10 C
Innichen
Saturday, June 14, 2025

(आज सोमवार की शाम ….एक चिट्ठी राजस्थान के नाम)

इन दिनों दिमाग में गजब की उथलपुथल मची हुई है….जैसे समुद्र में भंवर पड़ता है कोई.
25 दिसंबर की मेड़ता मीटिंग से पहले का एक महीना और उसके बाद का यह डेढ़ महीना, जैसे पूरी जिंदगी के गणित और दर्शन पर भारी पड़ा है.

कभी उम्मीद, कभी निराशा, कभी खुद पर गुस्सा, कभी पहाड़ जैसी गुलामी की मानसिकता से शिकायत….क्या किया अब तक, क्या करूँ आगे ? किसे आवाज दूँ, कौनसे गीत गाऊं ? क्या लिखूं, किसे पढाऊँ ?

पिछले पंद्रह बरस कैसे भागते भागते गुजर गए, पता ही नहीं चला. न होली मनाई, न दिवाली, न जन्मदिन, न कोई वर्षगांठ, न शादियों के मजे लिए…न पहाड़ों या रेगिस्तान में सेल्फियाँ लीं और न परिवार को समय दिया, न उसको कुछ कमाकर दिया.
बहुत से मित्रों ने विदेश घूमने बुलाया तो उधर भी नहीं गया…कसम खा रखी है कि तभी जाऊंगा, जब मेरे मिशन से वह यात्रा जुडी होगी. चुनावी सफलता के बाद ! और जैसलमेर, आबू, उदयपुर को इसलिए एन्जॉय नहीं कर पाता क्योंकि वहां की व्यवस्था को देखकर परेशान हो जाता हूँ…सफाई, पर्यावरण….सोचने लग जाता हूँ….ऐसा होना चाहिए, हम ऐसा करेंगे !

अब कुछ दिनों से ओशो के दर्शन से खुद को आँका है तो पता चला है…मैं ही दोषी हूँ, मेरी कमजोरियां जिम्मेदार हैं….कि आज राजस्थान इस हाल में है. मेरी आँखों के सामने ढोंगी-तमाशबीन, झूठे- झांसेबाज, मेरे लोगों को लूट रहे हैं, उनको बेवकूफ बना रहे हैं. और मैं अपने ही लोगों का विश्वास नहीं जीत पाया हूँ.

हालांकि यह सच है कि मेरे लोगों ने कभी मुझे यह जिम्मेदारी नहीं दी कि मैं उनके बारे में सोचूं या उनके लिए कुछ करूँ…उन्होंने कभी नहीं कहा. वे सिस्टम से परेशान तो हैं पर अपने ही कातिलों के गीत मजे में गा रहे हैं. उनकी कोई गलती नहीं है और न उनको मुझसे कोई उम्मीद है. उनको दिल्ली के आकाश से उभरते किसी नकली राजनैतिक अवतार की आस है. या किसी जातिवादी, सांप्रदायिक, जहरीले राजनेता से उनकी भावना जुडी है. मेरा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक विकास का मॉडल अभी उनको पसंद नहीं आया है. और मैं भी, यह सब मेड़ता जैसे छोटे कस्बे से लिखता, कहता हूँ….यह कोई बात हुई.

असल में, मूल और बड़े बदलाव का यह कीड़ा तो मेरी खोपड़ी में प्रकृति ने और ओशो ने घुसाया….कि कुछ करूँ ऐसा कि राजस्थान में जागरूक, जिम्मेदार नागरिकों की फ़ौज तैयार हो जाए. ऐसी फ़ौज जो यहाँ असली लोकतंत्र और असली विकास को धरातल पर उतार सके और जीवन समृद्ध, आनंददायक बने, प्रकृति, संस्कृति से समन्वय में रहे. यह समस्या मेरी है, लोगों की नहीं. मुझे कोई दूसरा रास्ता समझ नहीं आ रहा है क्योंकि मैं स्थाई समाधान चाहता हूँ.

कालिया, आखिर यह ख्वाब तूने क्यों देखा ? (फिल्म कालिया का डायलाग याद आ गया.)

अभी यह उथलपुथल इस 23 मार्च तक चलेगी, ऐसा लगता है. दिमाग ने तारीख आगे खिसका दी है. उस दिन एक बार फिर सोचूंगा कि क्या निर्णय लूँ.

दो तीन बड़ी कमजोरियां हैं, हर किसी इंसान में कुछ तो लोचा रहता है….इन कमजोरियों को डेढ़ महीने में कुछ दुरस्त करके देखता हूँ…गर कुछ हो. चमत्कार तो मेरे और मेरे लोगों के भीतर छुपा है….बाहर आने की देर है…कुछ जंतर मंतर करते हैं !
(मेरे लोगों से यहाँ मेरा मतलब फिलहाल राजस्थान के लगभग करोड़ लोगों से है, जिनमें सभी राजनेताओं और अफसरों के परिवार भी शामिल हैं.)

जो तथाकथित शुभचिंतक या आलोचक, मुझे क्लासिकल राजनैतिक चश्मे से देखते हैं, उनसे अनुरोध है कि मैं उससे बहुत धुंधला दिखाई दूंगा आपको….इसे उतारकर देखें तो कुछ कुछ समझ आऊंगा…मैं तो मेरे लिए ही पहेली हूँ, आपको इतना आसानी से कैसे समझ आऊंगा. आप कभी किसी सीट से एम एल ए बनने की सलाह देते हो, कभी ढोंग करने को कहते हो, कभी समझौते करने को कहते हो….मत दो ऐसे सलाहें……..आप नहीं समझोगे इस समुन्दर को…..मुझे तो अभी ‘कुछ खास’ लोग ही समझे हैं, जो दिल और आत्मा से मेरे साथ जुड़े हैं. उनको मैं अलग नजर आता हूँ.

इसलिए, मेरे साथ झूठी हमदर्दी न दिखाएँ…भगवान ने मुझे सब दिया है….रोटी, कपड़ा, मकान, बंगला, गाड़ी, पद, प्रतिष्ठा….सब दिया है. मेरा सक्रियता से साथ देना हो तो बात करें, वरना अपनी दुनिया में मजे करें. मुझे सुनने, पढने में अपना कीमती समय जाया न करें. मुझे Unfollow कर लें जल्दी से…रील देखें कोई.

अभी मैं अपने मीठे मीठे दर्द के साथ जी रहा हूँ….ऐसा दर्द जो मैंने पाला है, पोशा है…..इसकी दवा प्रकृति के पास है, जिससे मैं अरदास करता रहता हूँ. यह दर्द थोडा कम होगा जब राजस्थान के दस हजार जिन्दा, जागरूक, जिम्मेदार लोग मेरे साथ खड़े हो जायेंगे….और कम होगा, जब चुनावी सफलता के बाद राजस्थान का प्रशासन, खेती, पशुपालन, कुटीर उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य ….हर पहलु जनता के हक़ में मुड़ जाएगा. और कम होगा, जब अभिनव राजस्थान की रचना हो जाएगी.

अगर घटनाएँ मेरे हक़ में नहीं घटीं तो भी यह दर्द कम और ख़त्म हो जायेगा ! तब मैं अपनी कोशिश को ही एक सफलता मानकर संतुष्ट हो लूँगा और ग्राउंड जीरो पर जाकर नृत्य करने लग जाऊंगा, जिन्दगी के गीते गाऊंगा. आनंद में रहना है, हर तरह से.

तो क्या यह सब मैं उन लोगों के लिए लिख रहा हूँ, जो पढ़ लिख सकते हैं, समझ सकते हैं और समझा सकते हैं ? शायद…. उन्हीं के लिए. तो क्या ये लोग अपनी संकोची प्रवृति, बुझदिली से बाहर निकलेंगे ? शायद….उम्मीद तो उन्हीं से है.

डरो मत ! कोई जिम्मेदारी नहीं दूंगा तुम्हें ! Relax हो जाओ. मसानिया बैराग भी मत पालो. मन के बहलावे, बहकावे से बचो….दिल और आत्मा को तुम पर काबिज होने दो….फिर मेरे साथ आओ…ऑंखें खोलकर.

लिखते लिखते बहुत प्रेम से भर गया हूँ तुम्हारे लिए….डरपोक, गुलाम मानसिकता के, जिम्मेदारी से बचने वाले राजस्थानी मानस. मुझे तुम छोटे बच्चे की तरह लगते हो अक्सर ….तुमसे क्या नाराजगी ? तुमको सही जानकारी देकर जागरूक और जिम्मेदार बनाना, मेरी नैतिक जिम्मेदारी है….एक बार फिर कोशिश करूँगा….फिर 23 मार्च को मिलकर आगे चलेंगे या अलग अलग….

अभिनव अशोक,
अभी तक एक नकारा गया फालतू व्यक्ति, न वोट के काबिल न नोट के…..न सप्पोर्ट के.

अभिनव राजस्थान पार्टी.
एक प्यारी सी पार्टी, कुछ बिरले लोगों की.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles