(आज सुबह सुबह बेसहारा गौवंश के लिए राजस्थान की सबसे बड़ी अधिकारी, मुख्य सचिव जी को पत्र भेजा है ……अभिनव मिशन २०२२ का यह भी एक मुख्य मुद्दा है हमारे लिए, जिसे अंजाम तक पहुंचाना है……आप फुर्सत में और गंभीर हों तो पढना….वर्ना आगे चल देना ! दो पेज में है…और हाँ, अगर आप पढ़े लिखे हैं और पत्र लिख सकते हैं और बेसहारा गौवंश की पीड़ा भी अनुभव कर सकते हैं तो आप भी लिख सकते हैं…बीस तीस पचास का खर्चा है. जागरूक जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं )
अभिनव राजस्थान पार्टी
सी-१४, गांधीनगर, मेड़ता सिटी (नगौर- राजस्थान)
132/2022 24 सितम्बर 2022
प्रिय उषा शर्मा जी,
मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार
विषय – सड़को और गलियों में भटकते लाखों बेसहारा गौवंश के स्थाई समाधान के लिए गोचर और मनरेगा को जोड़ना.
मेडम,
कई वर्षों से हम सरकार को लिखते आ रहे हैं कि इस समस्या का स्थाई समाधान एक ही है और वह यह कि राजस्थान में उपलब्ध गोचर भूमि का विकास करके गौवंश को उस पर अधिकार दे दिया जाए. यह जमीन हमारे पूर्वजों ने उनके नाम छोड़ रखी थी. हम उस ऊंची सोच की विरासत को संभल नहीं पा रहे हैं और एक बड़ा अन्याय राजस्थान जैसी धरती पर कर रहे हैं. उस धरती पर जो गौवंश के लिए बलिदान करने वाले देवताओं के लिए जानी जाती है.
राजस्थान में लगभग 17 लाख हेक्टेयर जमीन आज भी आधिकारिक रूप से गोचर के रूप में दर्ज है. सरसरी अनुमान के मुताबिक़ लगभग 15-20 लाख गौवंश बेसहारा घूम रहा है. अगर गोचर इनको मिल जाए तो एक पशु के हिस्से एक हेक्टेयर जमीन आएगी और वह सम्मान से, आनंद से इस धरती पर अपना समय गुजार लेगा. कुछ लोग इस बात को टालने के लिए अतिक्रमण का कुतर्क देते हैं मगर हकीकत यह है कि दो चार लाख हेक्टेयर से ज्यादा अतिक्रमण नहीं है. अगर सरकार अभी दस लाख हेक्टेयर गोचर को भी विकसित करने का टारगेट ले तो काम की शुरुआत प्रभावी तरीके से हो सकती है.
इस काम के लिए पैसा कहाँ से आएगा ? वह भी हमने एकदम सरल समाधान बता रखा है. ग्राम पंचायतों का एक काम गोचर (चारागाह) विकास होता है पर वे ये काम करने में रुचि नहीं दिखाती हैं. वे ये काम मनरेगा से करें तो मनरेगा का कुछ अर्थ निकल जायेगा और गोचर विकास के लिए अतिरिक्त पैसे की जरूरत नहीं पड़ेगी. करना क्या है…..अतिक्रमण से मुक्त पड़ी गोचर के चारों और तारबंदी करनी है, अंग्रेजी बबूल हटाने हैं, जमीन को जोतना है, घास और पेड़ लगाने हैं और पानी के लिए नलकूप या अन्य व्यवस्था करनी है. एक हेक्टेयर विकसित गोचर में लगभग चार पांच गौवंश की व्यवस्था हो जायेगी अगर वैज्ञानिक और व्यवस्थित ढंग से यह काम हो.
ऐसा हो जाने पर आपको एक भी गौवंश सड़क या गली में बेसहारा नहीं दिखाई देगा. बल्कि गोचर के विकसित होने पर पशुपालन के प्रति पनपी आम किसान की बेरूखी भी कम हो जायेगी. चारे का संकट ही पशुपालक को सबसे अधिक परेशान करता है. यह लागत कम होने पर उसका लाभ बढ़ेगा तो रुचि बढ़ेगी. बच्चे भी दूध उपलब्ध होने से कुपोषण से मुक्त होने लगेंगे. साथ ही जैविक खेती के लिए माहौल बनने लगेगा क्योंकि गोबर भरपूर मात्रा में घर घर उपलब्ध होगा. गौवंश की बददुआ भी हम सबको नहीं लगेगी. पशु मूक हैं, पर पीड़ा तो उनको भी होती है, आत्मा तो उनकी भी रोती है.
सी एस मेडम, राजस्थान में गौमाता के नाम से ढोंग बहुत होता है पर दोगला समाज उसके लिए जिम्मेदारी लेने से बचता है. हम कई वर्षों से इस मुहीम को चलाए हुए हैं. कई गाँवों में इस मामले में सार्थक काम भी स्थानीय संसाधनों के दम पर हुआ है. आप चाहें तो आपको वे सब सफल प्रयोग दिखा सकता हूँ. लेकिन बड़े पैमाने पर यह काम समाज और सरकार, दोनों के मिलने पर ही होगा.
पता नहीं, यह पत्र आप तक पहुंचेगा या नहीं पर जैसे ईश्वर को अरदास करते हैं, वैसे ही मैं लगातार कई बरसों से राजस्थान के अधिकारियों को लिखता रहा हूँ. आज तक किसी ने नागरिक के तौर पर वापिस जवाब देना तक उचित नहीं समझा है. अब यह संबंध राजस्थान सरकार और नागरिकों के बीच हो गया है मेडम. खास लोगों को जवाब देना, आम लोगों के पत्र पटक देना और जवाब नहीं देना. हर बार सूचना के अधिकार का टाइम खाऊ इस्तेमाल करके जवाब लेना पड़ रहा है.
अगर यह पत्र पढने वाले बाबूजी और सेक्शन ऑफिसर आप तक इस पत्र को पहुंचा देते हैं तो गौवंश की दुआएं उनको लगेंगी. नहीं तो हमारा संघर्ष अब सामाधान तक रुकने वाला नहीं है.
आपसे निवेदन है कि इस मामले में पशुपालन, राजस्व और पंचायती राज विभाग की आवश्यक बैठक बुलाकर समन्वय करें और स्थाई समाधान की ओर कदम भरें. आप सबसे बड़ी अधिकारी हैं आज.
सादर, डॉ. अशोक चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष